मेरे मन के भाव
मेरे मन के भाव
मन मे दबे भाव घुमड़ उठते हैं
झंझावात से असीमित गति से
कलम उठा लिखूं भी तो
असहनीय पीड़ा देते हैं मुझे
मानो पस पड़े घाव को छू
दिया हो बेदर्दी से
मेरे शब्दों की पीड़ा को
समझ कर पढ़ लेना मात्र
अंतस्तल तक विहान कर लेना
क्यों मैं छेड़ देती हूँ यूँ ही किसी
कोने में दबी अपनी यादों को
जो टीस देती हैं असहनीय सी
मन के उद्गार उकेरती हूँ लेखनी से
शब्द रूप में अपने भाव रूपी दर्द को
आपके समक्ष सरल मान कर
शब्दो के मरहम सा कि शायद मुझे
कुछ राहत मिले आंतरिक पीड़ा से.