STORYMIRROR

Manju Saini

Tragedy

4  

Manju Saini

Tragedy

मेरे मन के भाव

मेरे मन के भाव

1 min
357

मन मे दबे भाव घुमड़ उठते हैं

झंझावात से असीमित गति से

कलम उठा लिखूं भी तो 

असहनीय पीड़ा देते हैं मुझे

मानो पस पड़े घाव को छू

दिया हो बेदर्दी से 

मेरे शब्दों की पीड़ा को

समझ कर पढ़ लेना मात्र

अंतस्तल तक विहान कर लेना 

क्यों मैं छेड़ देती हूँ यूँ ही किसी

कोने में दबी अपनी यादों को

जो टीस देती हैं असहनीय सी

मन के उद्गार उकेरती हूँ लेखनी से

शब्द रूप में अपने भाव रूपी दर्द को

आपके समक्ष सरल मान कर

शब्दो के मरहम सा कि शायद मुझे

कुछ राहत मिले आंतरिक पीड़ा से.


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy