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V. Aaradhyaa

Romance Classics

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V. Aaradhyaa

Romance Classics

मेरे माथे पर ये खूब जँचता है

मेरे माथे पर ये खूब जँचता है

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मेरे माथे पर मेरे साजन का प्रेम:

कुछ इस खूबसूरती से सजता है !


जैसे सुबह का रूपहला सा सूरज :

अपनी पूर्ण प्रखरता से रोज़ उगता है !


मेरे श्रृंगार का यही एक खास अंदाज:

मेरे उनके प्रगाढ़ प्रेम की बानगी बनता है !


एकटक निहारते हुए मेरा सजना कहता है :

तुम्हारे माथे पर मांगटीका खूब जँचता है !


कुछ कुछ उस चमकते चाँद की मानिंद

सुनहरा सा तुम्हारा मासूम चेहरा चमकता है !


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