मेरे माथे पर ये खूब जँचता है
मेरे माथे पर ये खूब जँचता है
मेरे माथे पर मेरे साजन का प्रेम:
कुछ इस खूबसूरती से सजता है !
जैसे सुबह का रूपहला सा सूरज :
अपनी पूर्ण प्रखरता से रोज़ उगता है !
मेरे श्रृंगार का यही एक खास अंदाज:
मेरे उनके प्रगाढ़ प्रेम की बानगी बनता है !
एकटक निहारते हुए मेरा सजना कहता है :
तुम्हारे माथे पर मांगटीका खूब जँचता है !
कुछ कुछ उस चमकते चाँद की मानिंद
सुनहरा सा तुम्हारा मासूम चेहरा चमकता है !

