मेरे गुरुदेव तुम, जगतमें महान
मेरे गुरुदेव तुम, जगतमें महान
मेरे गुरुदेव तुम, जगतमे महान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।धृ।।
जनपद आगरामे, आँवलखेडा ग्राम।
जन्म हुआ यहांपर, नाम रखे श्रीराम।।
पिता रुपकिशोरजी, गावमे बड़ा मान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।१।।
माता दानकुंवरीजी, दे नन्हेको आकार।
जीवन जीनेकी कला, और देती संस्कार।।
बचपनमेच मिला, उन्हे सेवाका ज्ञान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।२।।
कुष्ठरोगी महिलाकी, नित्य सेवा करते।
विरोध हुआ फिरभी, व्रत नही छोड़ते।।
सभी युवावोंके लिए, वे बने आयकान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।३।।
पंद्रहकी उमरमे, साधना स्थलपर।
हुयी बड़ी कृपा दृष्टी, गुरुकी उनपर।।
गुरु के छाया मे ही, किये तप महान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।४।।
विभिन्न विषयोपर, तैत्तीस सौ किताब।
लिख दिये गुरुजीने, सद्ज्ञानका सैलाब।।
सबसे आगे जगमे, है आचार्य विद्वान ।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथेकी शान।।५।।
धरतीपर ही स्वर्ग, मनुष्यमे देवत्व।
गायत्री परिवार का, यह है मुलतत्व।।
मेरे मार्गदर्शक है, गुरुजी भगवान।
तुम्हारी चरण धूल, मेरे माथे की शान।।६।।