मेरे देश में प्रद्युम्न अरोठिया
मेरे देश में प्रद्युम्न अरोठिया
मेरे देश की जो आन वान शान है
वो सदियों से चली आ रही है।
यहाँ परम्पराओं की गठरी भारी है मगर
अपनी संस्कृति को साथ
आगे बढ़ने की रिवाज चली आ रही है।।
मेरे देश में हर चीज को
सम्मान के साथ पूजने की
और उसका आभार जताने की
अनूठी विचार धारा चली आ रही है।
पश्चिम नहीं यह पूरब है,
रिश्तों को रोज तोड़ने की नहीं
विश्वास के साथ जीने की
पहल चली आ रही है।।
मेरे देश में घर की चौखट पर दीप
विश्वास के साथ जलाने की
सुदूर से एक रोशनी चली आ रही है।
कितना भी गहरा हो अंधकार
उसे मिटाने की
कालांतर से रिवाज चली आ रही।।
सच एक ही है मेरे देश का
और उसे मिटाने
अविश्वास की अदृश्य रेखा खिंची आ रही है।
जिसने भी यह कोशिश की
एक वक्त के बाद
वह स्वयं मिट गया
और उस विश्वास की झलक
आँखों में चमकती आ रही है।।