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Sunil Kumar

Romance

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Sunil Kumar

Romance

मेरे चंद मुक्तक

मेरे चंद मुक्तक

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सादगी पर तुम्हारी हम मर मिटे थे

पहली मर्तबा जब हम मिले थे 

कहना था तुमसे बहुत कुछ मगर 

जमाने के डर से कुछ कह न सके थे।

           

जख्म दिल का किसी को दिखाता नही

दर्द अपना किसी को बताता नही

बहुत देख लिया इस जमाने को मैंने

मरहम जख्म पर कोई लगाता नही।

          

न जाने कौन सा कर्ज चुकाते रहे

दर्द अपना छुपा कर मुस्कुराते रहे

कोशिशें बहुत की भुलाने की उनको

मगर वो रह-रह कर याद आते रहे।


तन्हाइयों में अक्सर खुद से बात कर लेता हूं

जज़्बातों को अपने कागज पर उतार लेता हूं

जब भी आती मुझको याद तुम्हारी

तुझ संग बीते लम्हों को याद कर ‌लेता हूं।


मंदिर-मस्जिद के चक्कर में उलझा क्यों इंसान 

माता-पिता से बढ़कर कोई दूजा न भगवान।

देख दशा देश की मन बहुत व्यथित है आज

मंदिर मस्जिद के नाम पर क्यों लड़ रहा इंसान।


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