मेरा सुनहरा स्वप्न
मेरा सुनहरा स्वप्न
आया मुझको स्वप्न सुनहरा
किया उसने मेरे मन में बसेरा
देखा मैंने स्वयं को आकाश में उड़ते हुए
रंग थे मेरे आस पास अद्भुत छटा बिखेरते हुए
मैंने खुद को देखा घुलते हुए सूर्य की किरणों में
जा बैठा मैं सूर्य के ही पावन चरणों में
सूर्य के पास हो के भी मुझे हुआ शीतलता का अनुभव
बड़े अद्भुत संगम से मुझे मिला ऐसा वैभव
आगे बढ़ा तो जा मिला मैं उड़ते पंछियों से
देखा मैंने धरती को, आकाश की अनंत गहराइयों से
मैंने सोचा की गर ये स्वप्न न होता
तो क्या मैं सदैव ही इतना प्रफुल्लित रहता
क्या जीवन में प्रसन्न रहना केवल है स्वप्न का विषय
मेरे इस स्वप्न ने मिटा दिये मेरे सारे संशय
मैं ही जनक हूँ अपनी प्रसन्नता का
यही है मार्ग मेरी उन्नति का
प्रकृति तो सदैव ही है मेरे साथ
तो क्यूँ न मैं थाम लूँ उसका ही हाथ
मैंने किया अपने स्वप्न से प्रेरित हो एक अटल निर्णय
प्रकाश फैलाऊंगा मैं चारों ओर, जैसे हो सूर्य की किरणें।