मेरा मन
मेरा मन


मन का मत पुछो मेरे यारों क्या सोचे क्या वो करता है !
मेरे बस की बात ना पुछो वह जो चाहे वो सब करता है !!
ना माने किसी का कहना बंधन को कभी ना माना है !
उसके कहने पर मैं चलता हूँ उसको ही मैंने माना है !!
लिखने को जब वो कहता है तो शब्द मेरे निकलते हैं !
शब्दों की माला गढ़ गढ़ करके रंग महल बन जाते हैं !!
मन विचलित जब हो जाता है मन बांध नहीं पाता है !
स्पंदन स्फूर्ति के झंकारों से सुंदर रूप निखरता है !!
कभी शृंगारों से अलंकृत हो अलंकारों को बरसता है !
कभी मीठे बोलों से वो मधुर गीतों के बोल सुनता है !!