मेरा क्या कसूर है
मेरा क्या कसूर है
कल अपनी सेना ने, मेरे गाँव में मुनादी पिटवा दी,
गाँव से लगी अपनी सीमा पर तनाव का माहौल है।
सीमा पार से पडौसी सेना गोलीबारी कर सकती है,
अपने २ घर छोड़कर, जल्दी से कहीं दूर चले जायें।
दो देशों के आपसी झगडे से, तनाव की स्थिति है,
दोनों देशों की सेनायें, युद्ध के लिये तैयार खड़ी हैं।
मेरे गाँव में सेना की, आवाजाही बहुत बढ़ गयी है,
लेकिन मैं अपना घर क्यों छोडूं, मेरा क्या कसूर है।
अगर दो देश लगातार एक दूसरे को उकसा रहे हैं,
पडौसी मौकापरस्त चीनीयों के झांसे में आ रहे हैं।
दोनों देशों के हुक्मरान चैन से अपने घरों में बैठे हैं,
पर मेरा घर निशाने पर क्यों है, मेरा क्या कसूर है।
देश की आज़ादी हमारी लिये तो बरबादी बन गयी,
देश टूट गया, नियंत्रण रेखा गाँव के पास बन गयी।
पिछले ६९ साल में कितनी बार बेघर होना पड़ा हैं,
दूसरों के रहम पर जीना पड़ा है, मेरा क्या कसूर है।
अब ऐसे बने हालात में, क्या करूं, मैं कहाँ जाऊं,
साथ में क्या उठाऊं, कौनसी चीज छोड़कर जाऊं।
मैं बाकी देशवासियों की तरह क्यों नहीं जी सकता,
मुझे ही क्यों भागना पड़ रहा है, मेरा क्या कसूर है।
मुझे अपनी लहलहाती फसलों को छोड़ना पड़ता है,
मुझे बीबी बच्चों के साथ इधर उधर भागना पड़ता है।
‘योगी’ अगर नियंत्रण रेखा मेरे घर के पास पड़ती है,
इसमें मेरा क्या कसूर है, इसमें मेरा क्या कसूर है।