मेरा ग़म
मेरा ग़म
वो घर और तेरे हाथों से साथ छूटा है,
लकीरों का मुकाम नहीं जो ज़िन्दा है...
काले दिल वालों का भी ख़ून लाल होता,
इत्तफाक से फिर ख़ुदा हिसाब लेता है..
नए साल की होती यही पुकार है,
छोड़ो ग़म होती खुशियों की दुकान है..
पल पल यह जिंदगी बहुत तड़पाती है,
ज़ब अपने घर आँगन की याद आती है...
ख़ुद को भूल जाएं तो तसब्बुर है मेरा,
मगर वो घर वो गली न भूलें जहाँ घर है मेरा...
