मेरा गाँव
मेरा गाँव
जब सो जाता हैं सारा शहर,
कुछ भौतिकता की मदहोशी में,
जागता हैं तब भी मेरा गांव,
प्रकृति माँ की प्यारी गोदी में।
सुंदर हरितमा से भरा हुआ,
प्यारी प्रकृति में खिला हुआ,
हाँ, वो मेरा गांव ही तो है,
जो मिलता हैं हमेशा मुस्काता हुआ।
मिलोगे मेरे गांव से,प्रकृति के वरदान से,
तो चुरा लो न कुछ पल भागदौड़ के,
चलो फिर से गांव चलते हैं,
प्यारी धरा के अंक में खेलते हैं,
भूल कर हर दम्भ,अहम को,
आओ बन प्यारे पुष्प सजते हैं।
खोज लाते हैं फिर वही अपनी प्रकृति,
कभी न हार मानने की,
प्रेम,करुणामय जीवन की,
श्रम में फिर जुट जाने की,
नही जी आज तक तो क्या,
चलो आज से जीते हैं,
कुछ ही पल क्यो न सही,
गांव की मिट्टी से जुड़ते हैं,
चलो न,आज फिर गांव चलते हैं,
कुछ खुद से मिलते हैं,
कुछ प्रकृति से बाते करते हैं,
दोस्त, सखा सब मिल,
एक प्यारा जीवन जीते हैं।
चलो न, फिर से गांव चलते हैं।।