मेरा गांव
मेरा गांव
जब निराशाओं के झूले पर झूलता है।
तब मेरा मन गांव की ओर चलता है।
जब वीरान- सा पतझड़ हो जाता है।
तब गांव मुझे सावन के झूलों पर
बिठाता है।
जब निराशाओं के झूले पर झूलता है।
तब मेरा मन गांव की ओर चलता है।
जब वीरान- सा पतझड़ हो जाता है।
तब गांव मुझे सावन के झूलों पर
बिठाता है।