भक्त वत्सल राम
भक्त वत्सल राम
सत्कर्मों की चाबी से ही स्वर्गद्वार खुल पाएगा।
दान पुण्य और ईश्वर भक्ति, प्रभु कृपा को पाएगा
मेरे ध्यान में तू संज्ञान में तू, मेरे तृप्त मन की जिज्ञासा तू।
मेरे भजन में तू संस्कार में तू, मेरे संयम की अभिलाषा तू।
भक्ति का वरदान दिया भक्त वत्सल राम ने।
ध्यान में संज्ञान हुआ, उत्थान किया है राम ने।
क्षणभंगुर संसार में चिरंतन राम नाम है।
राम भजन की ज्योत में अंत: स्थल बना राम धाम है।
अपेक्षा-उपेक्षा का भंवर जाल है, निस्पृहता ही साजो-संभाल है।
जप ले राम का नाम, राम हृदय अनंत विशाल है।