बसंत पंचमी-1
बसंत पंचमी-1
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पीत रंग से सजी धरा, समृद्धि का प्रतीक।
पीतांबर ओढ़े बसंत, है उपमा कितनी सटीक।
नव पल्लव नव कोंपल आम पर बौरों ने आकर।
लो सजा दिया, ऋतुओं का राजा, कुसुमाकर।
सरसों फूली, अलसी झूली, गेहूं की बाली ने गाकर।
माघी की धूम में कोयल ने कूक बजाई बसंत ऋतु में आकर।
मंडराते भ्रमर की शान, तितलियों का फूलों से मिलान।
चित्रकारों की बढ़ी आन, बना नव जहान।
हंसवाहिनी शारदा करते सभी अराधना।
ज्ञान ज्योति अंतस में भरे सबकी यही प्रार्थना ।
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धरा हरित परिधान में, डाली की छटा निराली।
श्रृंगार रस की बयार बही, ऋतुओं में बसंत आली।
उत्सव है विश्वरूप का, प्रेम के उदात्त स्वरूप का।
नवरूप का, रंगरूप का, ज्ञान के मूर्तरूप का।
प्रकृति खेल रही होली, रंग-बिरंगे रंग है।
हर बसंत में लाती, भर-भर अपने संग है।
हर छंद में, हर गंध में, बासंती फुहार है।
धरा पर छा गया, बेशुमार निखार है।
हर्ष उमंग अपार, पतंगों से भरा आकाश।
बसंत जीवन में भर रहा, प्रकाश ही प्रकाश।