श्री राम
श्री राम
कण-कण में रमे हैं राम, अंतस में सजे हैं राम।
मेरे चिंतन का वरदान, मेरी भक्ति में है राम।
मन काहे को कोह में, कष्ट उबारे राम।
कर्मों का फल कर्ता भोगे, जपता रह तू राम।
भोर में राम साँझ में राम, जीवन के हर पल में राम।
राम ही राम, राम ही राम, मेरा हर उद्बोधन राम।
सर्वविदित है राम नाम, उर में उदित है राम नाम।
मुदित मन का कारण राम, भवसागर के तारण राम।
नवधा भक्ति अजपा जाप राम, भक्तों की पिपासा राम।
परम प्रवीण अतुलित राम, आनंद मंगल करते राम।