होली
होली
रंगों का नृत्य देख, ढोल मंजीरा बजने लगे।
संगीत ने छेड़ी ऐसी तान, फाग लबों पर सजने लगे।
खुशियों की बहार, गुलाल की फुहार।
खिल रहे चेहरे, छाया है खुमार।
कर रही ठिठोली रंगदारों की टोली।
फागुन की बयार चली रंगो भरी होली।
रंगों का यह खेल है कभी कच्चे तो कभी पक्के रंगे।
तन ही तन रंगे, मन अब तलक कहां रंगे।
यूं ही नहीं रंग पकता है।
बारबार कसौटी पर कसता है।
अपनों में ढलता है।
तब कहीं जाकर मन में घुलता है।
सबने अपना अपना रंग उछाला।
रंगों ने इंद्रधनुष बना डाला।
रंग ने रंग को बखूबी संभाला।
अंततः शांति का रंग बना डाला।
होली ने आते ही सब रंगों को मिला डाला।
प्रेम की भाषा समझाकर प्रेम का पाठ पढ़ा डाला।
रंगों के साथ आकर, रंग बिखेर जाती है।
वेंटिलेटर पर चल रही सांसों को खुला आसमान दे जाती है।
फगुआ,चैती की धूम मचाकर,
संस्कृति का सौंदर्य अनंत कर जाती है।
होली बस यूं ही नहीं आती है।
देने और सिर्फ़ देने आती है।