ममता-त्याग की मूर्ति है नारी
ममता-त्याग की मूर्ति है नारी
ममता-त्याग की मूर्ति है नारी,
और है इस सृष्टि का आधार।
गुरुतर दायित्व है सदा निभाती,
ऋणी है यह सारा ही संसार।
एक भवन घर बनता है जब,
नारी है जब उसे सजाती।
वह निज स्वेद बुद्धि के बल से,
हर पल दिन-रात लगाती।
अगणित कष्ट खुशी से सह कर,
संवारती है पूरा घर-परिवार।
ममता-त्याग की मूर्ति है नारी,
और है इस सृष्टि का आधार।
गुरुतर दायित्व है सदा निभाती,
ऋणी है यह सारा ही संसार।
आज जगत के हर क्षेत्र में,
नारी ने निज परचम लहराया।
कोई क्षेत्र नहीं आज जगत का,
अछूता जो नारी से रह पाया।
बहु-बल बहु-कर की स्वामिनी,
जगत में इसकी है शक्ति अपार।
ममता-त्याग की मूर्ति है नारी,
और है इस सृष्टि का आधार।
गुरुतर दायित्व है सदा निभाती,
ऋणी है यह सारा ही संसार।
मृदुल भाव संग पालन-पोषण,
निज सौम्य रूप दिखलाती।
पर मर्यादा-रक्षण हित रौद्र रूप में,
रण चण्डी रूप दिखाती।
दायित्वों के निर्वहन हेतु वह,
रूप धरती है कई हजार।
ममता-त्याग की मूर्ति है नारी,
और है इस सृष्टि का आधार।
गुरुतर दायित्व है सदा निभाती,
ऋणी है यह सारा ही संसार।