मेहनतकश मुसाफ़िर
मेहनतकश मुसाफ़िर
भाता हो जिन्हें बुझ जाना,
होते प्रज्वलित दीप नहीं,
दूर दिखते झिलमिल दीए की,
राह नहीं है दूर कहीं।
थक कर ना बैठ,
मन से न हार,
मेहनतकश मुसाफ़िर की
होती मंज़िल दूर नहीं।
सीर से गिरी लहू की बूंद
चिंगारी बन जाती है,
नदी धारा में आगे बहकर,
अमिट निशां छोड़ जाती है,
मुरझाना जिन्हें आता हो,
होते मुस्काते फूल नहीं,
मेहनतकश मुसाफ़िर की
होती मंज़िल दूर नहीं।
चाहो तो एक दिया जलकर,
मशाल बन जाता है,
तम का सीना चीर, महताब
नभ के चित्त को सुहाता है।
आकर इतने पास फिरे जो,
होता सच्चा शूर नहीं,
मेहनतकश मुसाफ़िर की
होती मंज़िल दूर नहीं।
तुम्हारा पुण्य प्रकाश प्राप्त कर
दिशा दिप्त हो जाएगी
मेहनत तुम्हारी अनल अक्षरों में
सुनहरा इतिहास रच आएगी
नीलम के मेघ नहीं है रखते
घुल जाने की चाह कभी
मेहनतकश मुसाफ़िर की
होती मंज़िल दूर नहीं।
