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Sanjay Aswal

Tragedy

4.3  

Sanjay Aswal

Tragedy

मेहनत की मेढ़

मेहनत की मेढ़

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कड़कड़ाती धूप

और 

उसके टूटते टुकड़े

किसान के आंखों का

पानी सूखा देते हैं,

और 

जो पसीना टपकता है

उसके बदन से झरझर,

वो धरती की प्यास

बुझाने के लिए

नाकाफी है।

उसके दिल की टीस

आसमान को निहारती

दो आंखे,

बोझिल होती उम्मीदों को

बादलों के पीछे टुकर टुकर

इधर उधर भर्मित करती आस पर

लगाए बैठी है,

पर 

निगोड़े बादल

जाने क्यों हट पर बैठे

ऐंठें हैं,

और

कड़ी तपती धूप में भी

उसकी परीक्षा लिए जा रहे हैं

और 

वो ढीट

जुटा है

मेहनत की मेढ़ बांधने

छोटी छोटी नन्ही बूंदों के लिए।



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