जागो
जागो


थके हारे से क्यों सोये हो
क्यो चेतना शून्य सी हो गई।
क्यों खो गए सारे सितारे जो टिमटिमाते थे
आज पूनम में भी अमावस क्यों हो गई।
महकता था चमन पतझड़ में भी कभी
अब वसन्त में भी बहार खो गई।
न थमने दो भावनाओं के ज्वार को
जागो नए युग की सुबह हो गई।
क्यों अलसाए हो तुम सभी इस कदर
अभी उस चेतना को जगाना है जो कहीं खो गई।