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Niva Singh

Tragedy

3  

Niva Singh

Tragedy

कुचला आत्मविश्वास

कुचला आत्मविश्वास

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तालाब की गहराइयों से निकली

बुलबुले सी थी मैं

जो आँखों में चमक लिए मंज़िल को

निकली थी मैं

सोचती थी संसार इंसानियत की मूर्त है

फिर नजर पड़ी शैतानों की

और डूब गई नईया इंसानियत की

फिर अंधकार का चादर लिए घिर

गया संसार

काले चादर ने ओढ़ लिया ये आसमां

ये जहां


निर्वस्त्र किया मेरे रुह को मेरी आत्मा

को

चिखें गूंजती रही मेरी जहां में

उस हवस में मेरे आँसू की अविरल

धारा बहती रही

और वो पिघलती रही जली मोमबत्ती

की भांति

अंदर की लौ डगमगाती रही


आखिर आत्मा ने धारण किया मौन को

मैं नहीं मेरा पार्थिव बयां कर रहा है

कि ये संसार ये दुनिया, दुनिया नहीं

दरिंदों और दरिंदगी का झुंड है

समय चलती जाएगी मोमबत्तियाँ

बूझती जाएगी

और तुम्हारी अश्रु धाराएं, तुम्हारा स्वर ,

विरोध ठहर सा जाएगा

परंतु क्या मुझे इंसाफ मिल पाएगा

सर्वर मेरे तुम दल कुचल कर पीस ना

पाओगे

शायद तुम इंसानियत को यूं ना

ठुकराओगे।

         



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