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Sneh Shah

Tragedy

4.8  

Sneh Shah

Tragedy

सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं।

सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं।

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सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं,

दुनिया से भाग कर किसी कोने में सो रहा हूँ मैं,

मंज़िल से हूँ भटका, राहो को खोज रहा हूँ ,

सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं।


मौको की ज़मीन में,

आलस के बीज बो रहा हूँ मैं,

मुश्किलों से मुँह मोड़ कर,

सुकून की तलाश कर,

काबिलियत के हीरे को

लापरवाही के बाजार में बेच रहा हूँ मैं,

सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं।


बेचैन बच्चे की करवटों की तरह

अपने ख़ुशी की वजह बदल रहा हूँ मैं,

इस रिश्तों की दौड़ में,

लड़खड़ा कर चल रहा हूँ मैं,

हर असफलता पर खुद को

नयी उम्मीद का झूठा दिलासा दे रहा हूँ मैं,

खुद से ही लड़ कर,

खुद से ही जीत कर,

अंदर ही अंदर हार रहा हूँ मैं,

सब कुछ तो खो रहा हूँ मैं।


 


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