मेरे समाज की विपरीत मानसिकता
मेरे समाज की विपरीत मानसिकता
मेरे समाज का संकीर्ण मन
क्यों हर दिन यह बोल पड़ता है,
कपड़े पहने तू छोटे
तेरे घरवालों को कैसे चलता है।
समाज की हिंसावादी सोच
एक बात तुमसे मैं पूछता हूं
जब तेरी बीवी पेट दिखाने जैसी
साड़ी पहने तो तुझे अच्छा लगता है,
पर जब कोई मेरी बहन 1
इंची पेट दिखाने वाला कमीज पहने
तो भाई तेरा दिमाग क्यों खलता है।
नारी से क्यो जलता है,
तू नारी से ही चलता है,
कसाई क्या उच्च विचार है तेरे,
भूल गया कि कभी तेरी मां भी बेटी थी,
जब भी वह बीमार होकर
पलंग पर लेटी थी तुझसे
पहले ख्याल पूछने आई उसकी बेटी थी।
क्यों कहता है, नारी की अक्ल घुटनों में रहती है,
बस तू यह बात इसलिए कह पाता है
क्योंकि वह ममता की मूरत तुझे
अपनी कोख में 9 महीने पालती है।
समाज तू भी क्या औकात बता देता है अपनी,
औरतों पर हाथ उठाकर
मर्दानगी बता देता है अपनी।
किसी की बेटी घूमने पराये के साथ
इसे तुम आवारा गिरी बताते हो,
यह भी तो हो सकता है कि वह
आवारा नहीं उसका भाई हो।
मानसिक रोगियों क्यों देह व्यापार करते हो।
चाहे स्त्री साड़ी पहने या पहने कोई वेष
उसे देख कभी टीका टिप्पणी ना करें शेष।
यह महाभारत का चीरहरण कब छोड़ोगे
कब तुम पांडव बन बेमतलब का गुरूर तोड़ोगे।