बेटी एक कहानी
बेटी एक कहानी
ज़ख्म बड़ा पुराना है
दीमकों की ये बस्ती है
बेटी की आबरू यहाँ लुटती
बड़ी जल्दी है
यहाँ लोग सभी अपने है
मन से ये कपटी है
मुँह में बेटी दिल में वासना
इनके भीतर बस्ती है
छोटा था तब जाना मैने
ये मंदिरों में ही पूजती है
बेटियों की आबरू यहाँ
लूटती बड़ी जल्दी है
यहाँ रोज़ एक एक कदम पर
वो अंगारों पे ही चलती है
घर से लेकर विद्यालय तक
कतारों में ही फँसती है
ये सच है यहाँ बेटी
गिर गिर कर ही संभलती है
वो गिरती है वो उठती है
ये जिद्द लिए वो रोज़ जगती है
नन्हे नन्हे पैरो से
समंदर पर वो चलती है
बड़ा हुआ तो जाना मैने
अंधों की ये बस्ती है
दो हो या साठ साल की
यहाँ बेटी कहाँ सुरक्षित है
वो कहती है ये देश नहीं है मेरा
ये पापियों की बस्ती है
इस देश की कहानी में
मेरी छिन्न भिन्न होती हस्ती है..