STORYMIRROR

Sandeep Panwar

Tragedy

1.0  

Sandeep Panwar

Tragedy

बेटी एक कहानी

बेटी एक कहानी

1 min
394


ज़ख्म बड़ा पुराना है 

दीमकों की ये बस्ती है

बेटी की आबरू यहाँ लुटती 

बड़ी जल्दी है

यहाँ लोग सभी अपने है 

मन से ये कपटी है 


मुँह में बेटी दिल में वासना 

इनके भीतर बस्ती है

छोटा था तब जाना मैने 

ये मंदिरों में ही पूजती है

बेटियों की आबरू यहाँ 

लूटती बड़ी जल्दी है


यहाँ रोज़ एक एक कदम पर 

वो अंगारों पे ही चलती है

घर से लेकर विद्यालय तक 

कतारों में ही फँसती है

ये सच है यहाँ बेटी 

गिर गिर कर ही संभलती है


वो गिरती है वो उठती है

ये जिद्द लिए वो रोज़ जगती है

नन्हे नन्हे पैरो से

समंदर पर वो चलती है


बड़ा हुआ तो जाना मैने 

अंधों की ये बस्ती है

दो हो या साठ साल की 

यहाँ बेटी कहाँ सुरक्षित है

वो कहती है ये देश नहीं है मेरा 

ये पापियों की बस्ती है

इस देश की कहानी में

मेरी छिन्न भिन्न होती हस्ती है..


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy