बेवफ़ाई
बेवफ़ाई
हम किसी दौड़ के उलझे हुए ख़्वाबों की तरह,
अपनी माज़ूर तमन्ना को लिए फिरते हैं,
अपनी बेसूद काविशों की तिजारत के लिए,
दिल गिरफ़्ता और जाँ उदास लिए फिरते हैं।
राह में दुश्वारियां जो हायल हैं,
अपनी बेकार तमन्ना के असबाब लिए फिरती हैं,
नाचती हैं ख़ामोशी अपनी इंतेहा पसंदी पर,
फिर घुल जाती हैं शोर ओ ग़ुल की आँखों,
मैं भी तो झांकता ही रहता हूँ,
उसकी गिरया ए नमनाक से।
ये सब अलग अलग दुःख हैं मगर,
ये तरकीब कहाँ से लाऊं,
के मेरी बेवफ़ाई उसको ,
और सोगवार न करे।