मेडल बराबरी का
मेडल बराबरी का
सुरभि बचपन से ही दिव्यांग और कमजोर थी। प्रभु की मर्जी के आगे भला किसका जोर चल सकता था। विनय सुरभि का छोटा भाई था। बडा ही समझदार।
मम्मी पापा ने दोनों बच्चों की परवरिश समान रूप से की थी। जो भी चीज़ आती दोनों के लिए बराबर आती थी।
विनय कान्वेंट स्कूल में पडता था। हर काम में सबसे आगे। टीचर उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे। पर जब भी बहन को देखता मायूस हो जाता।
एक दिन बहन के साथ खेल रहा था विनय को बातों ही बातों में सुरभि ने मेडल जीतने की इच्छा जाहिर की। विनय ने मन ही मन निश्चय किया कि इस बार वो मेडल अपनी बहन के साथ शेयर करेगा। और दोनों गीत गुनगुनाने लगे। फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेंरी बहना है।
कुछ दिन बाद जब वर्षिकोत्सव था तब विनय ने न केवल पडाई में बल्कि योगा, डांस आदि अलग-अलग दस मेडल जीते। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा
घर आते ही सबसे पहले पांच मेडल बहन के गले में व पांच अपने गले में पहने। बहन खुशी से झूम रही थी। और मम्मी, पाप विनय और सुरभि के प्यार को देख खुशी के आंसू बहाने से खुद को न रोक पाए। क्यूंकि ये रिश्ता मुस्कान का था। रिश्ता बराबरी का था।
तो दोस्तों बताइयेगा जरूर कैसी लगी आपको मेरी कहानी। ऐसे बच्चे प्यार की चाह रखते है। प्यार व उत्साह बढने पर इनके जीवन को एक मजबूत दिशा और हौसला मिलता है। ऐसे बच्चों को दयनीय दृष्टि से न देख कर उनका हौसला बड़ाना चाहिए।
न आंको किसी से कम इनको
ये प्यार चाहते हैं
रिश्ता ये बराबरी का है
ये बस सम्मान चाहते है
घृणा से न देखों इनके भी जज्बात होते हैं
कुछ बडे़ हो न हो पर इनके ख्वाब पाक होते हैं।
ये कभी न दिल दुखाते किसी का
खुदा के रूप में ये इन्सान होते हैं।