गुरु
गुरु
हमारी नादानियों को बेहतर समझते हैं,
पिता, माँ कभी दोस्त कभी गुरु बनते हैं।
अपने हर सुख का करके त्याग-
हाँ वो हमारे बेहतर मार्गदर्शक बनते हैं।
रखकर दूर दृष्टि भविष्य को संवार देते हैं,
हम से भी ज्यादा हमारी पहचान रखते हैं।
हमारे बेहतर कल की खातिर ही-
गढ़ कर हमें हमारे कुंभकार बनते हैं ।
उसके जैसे ना दुनिया में कोई हमदर्द पाते हैं,
आड़े तिरछे अक्षर को सीधा सिखाते हैं।
अंधेरे में भी वो दिखाते हमें प्रकाश-
गुरु ही वह दिव्य ज्योति जो जड़ को चेतन बनाते हैं
नमन ऐसे गुरुओं को जो ईश बन जाते हैं
बदल कर लकीरें हमारी सच्चे मीत बन जाते हैं।