मधुर मिलन
मधुर मिलन
होलिका दहन में,
सवाल उठता ज़हन में,
क्या इतना बुरा था काम ?
जोे जल गई होलिका बहन।
पर वो तो मिटा के अपने वजूद का गीत
कायम कर गई होली मिलन की नई रीत।
खुशी में बरसते रंग गुलाल और अबीर
आज बहें न किसी की आँखों से नीर।
रंग बिरंगें रंगों में रंगती दुनिया सारी
भर भर मारते रंगों की पिचकारी।
मिठाईयों की मिलती सौगात
तम में न बीते किसी की रात।
करते हुड़दंग और मस्ती
भोजन से वंचित रहे न कोई हस्ती।
झूम-झूम कर नाचे गइया
संग-संग नाचे कृष्ण कन्हैया।
मस्ती में झूमती राधा मतवाली
प्यार के रंग से रहे न,
दुनिया का कोई कोना खाली।
देखो जी देखो रंगों की बहार
रंगों के रंग में रंगता संसार।
रंग तकरार का, रंग इकरार का
सबसे अनूठा रंग है जी प्यार का।
रंग दुख का, रंग सुख का
रंग हास का, रंग परिहास का
सबसे अनूठा रंग है जी हर्ष “औ” उल्लास का।
रंग तेरे का, रंग मेरे का
सबसे अनूठा रंग है जी हमारे का।
रंग गीत, रंग संगीत
रंग साधना, रंग आराधना
रंगों से ही एक दूसरे को है जी बाँधना।
रंग रंगरेज का
कच्चा रंग, पक्का रंग
काश, मैं भी होता रंगरेज
और चढ़ाता इतना पक्का रंग
कि कभी न खत्म होता
मधुर होली मिलन का रंग।