मौसम
मौसम
जुर्म आंखों का और दिल हुआ सौदाई
कितने पतझड़ को समेटे तो बहार आई
इश्क़ की बात हे और ये आलमे रानाई
नाम का नाम हे, रुसवाई की रुसवाई
कौन कहता हे अकेला हे सफर मेरा
साथ अक्सर मेरे चलती हे मेरी तन्हाई
बेसबब युं ही बरसते नहीं सहराओं में
मस्लेहत हे कोई या बादलों की बिनाई
कोई बैरागी की खामोश दुआओं जैसी
उसके लहजे से महकती हुई नरमाई।

