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Bawa बैरागी

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Bawa बैरागी

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रूह

रूह

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मेरे अंदर, रहता कोई और है

लफ्ज़ मेरे, कहता कोई और हे

खामोस है, डगर दिल की मगर 

सन्नाटे में, बहता कोई शोर है 

जुर्म अशराफ करें लाख मगर 

दर्द सारा, सहता कोई और है

सिवा मेरे, हैं सब गुनाहगार

सुना है ये, कहता कोई चोर है

बुर्ज की बिखरती मिट्टी जैसा

बावा धीरे से ढहता कोई दौर है ।


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