हयात
हयात
ज़िंदगीको अपनी ढोया नहीं, जिया है
थोड़ा ही सही लेकिन कुछ तो किया है
चाह में दरिया की,जहां डूबते हैं लोग
प्यासको हमने वहां भर भर के पिया है
असबाब अपना यूँ तो कम ही था मगर
सदक़ा तेरे नाम पर जी भरके दिया है
रिश्तों में जो हमने, खाया है ख़सारा
नाराज़ है क्युं, हमने क्या तेरा लिया है
अपने लिए तो जीते हैं बावा सब मगर
औरोंके लिए क्या कभी तुमने जिया है।
