मौसम
मौसम
मौसम के मिज़ाज से भी नाज़ुकी
तुम्हारे मिज़ाज ने पाई है
जिसने भी तुझे देखा
तुझे चाहा उसने
यह बिन जाने कि
कैसे उसने अपनी जान
आफ़त में फंसाई है
जो मौन है वो बुत है
पत्थर है संगदिल है
नहीं सब्र जिनमें वो
इंसान है उसका दिल है
जिसे दीवाना बना तूने
चारों दिशाओं में लूटी
अपने हुस्न कि वाह्ह्हह्ह्ह्ह वाही है
मौसम के मिज़ाज से भी नाज़ुकी
तुम्हारे मिज़ाज ने पाई है
जिसने भी तुझे देखा
तुझे चाहा उसने
यह बिन जाने कि
कैसे उसने अपनी जान
आफ़त में फंसाई है
मेरी न बन सको तो
कोई रंज नहीं मुझ को
किसी की तुम बनोगी
नहीं यह भी यकीन मुझ को
वफ़ा तुम्हारी आँखों में
कभी देखी नहीं मैंने
शायद यही वाज़िब वज़ह है
जो तुम्हारे हिस्से में
चली आई तन्हाई है
मौसम के मिज़ाज से भी नाज़ुकी
तुम्हारे मिज़ाज ने पाई है
जिसने भी तुझे देखा
तुझे चाहा उसने
यह बिन जाने कि
कैसे उसने अपनी जान
आफत में फंसाई है
मेरा इश्क़ तुमसे बेगाना नहीं रहा है
हाँ मानता है यह ज़रा
एक तरफा ही रहा है
कोई नहीं जिसका सुना
उसका ख़ुदा होगा
जो खुद अपना न हुआ हो
वो बशर ख़ुदा का क्या होगा
यही सोचकर कुछ शर्म
मुझे खुद पर ही आई है
मौसम के मिज़ाज से भी नाज़ुकी
तुम्हारे मिज़ाज ने पाई है
जिसने भी तुझे देखा
तुझे चाहा उसने
यह बिन जाने कि
कैसे उसने अपनी जान
आफ़त में फंसाई है

