मौन मासूमियत.....
मौन मासूमियत.....


कुछ अनकही बातों को
सुन लेता है अधीर मन
जो कहीं गई आँखों से
पलकों से होठों से
भावों से ज़ज़्ब एहसासों से
ऐहतराम से अख़लाक़ से
उसको मन समझा ही नहीं
शिकायत यूँ करता है
उस मासूम ज़िद्दी बच्चे सी
जिसने अपना खिलौना
छुपा लिया
दूसरे के खिलौने को
उसे हथियाना है
अब ज़िद भली या
मौन मासूमियत
यह अख़्तियार किसका है
न तो नम पलकों का
न रुसवा ज़ज़्बातों का
न बेलगाम ख़्वाहिशों का
न ज़ुल्फ़ें बरहम का
न चश्म -ए -पूर्णम का...