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मौलश्री का पेड़

मौलश्री का पेड़

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मेरे घर के

सामने के पार्क में ..

था मौलश्री का ठूंठ

पेड़ एक !

काट दिया था

किसी ने अंधेरी रात में

चुपके से ..

और झोंक दिया था

होलिका दहन की

अग्नि में !

हृदय विदारक

चीत्कार कर उठी थी

शाखाएं उसकी कैसे ..

पूछती हूँ मैं!

क्या निर्बलों की

यही है एक नियति

यथार्थ में!

कोई तो बोलो

चुप क्यों हो ..

तुम सब !

क्या हर बार

देखना चाहोगे

मौलश्री की नियति ..

और सुनना चाहोगे

चीत्कार उसका !

उत्तर चाहिये मुझे

क्या फिर चाहते हो

पेड़ ठूंठ एक

मौलश्री का !...


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