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मैंने देखा है

मैंने देखा है

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सहमी सहमी सी है खवाहिशें मेरी

मजबूरियों को मैंने हावी होते देखा है।


गिरते पड़ते कई बार साथ चलना चाहा

मगर अक्सर वक्त को मैंने हाथ छुड़ाते देखा है।


रातों में मैंने जिन सपनों को सजाया था

सुबह आंखों से उन्हें बहते देखा है।


एक शख्स था जो दिन के उजाले में

अंधेरों में उसे परछाई बनते देखा है।


जब जब फ़र्ज़ निभाया है मैंने

अपनी भावनाओं का मजाक बनते देखा है।


दूसरों को संभालते संभालते मैंने

अपनी ज़िन्दगी को बिखरते देखा है।


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