मैं
मैं
शायद मैं आज भी अंजान हूँ अपने आपसे
खुद को भूल कर हमेशा मिलती हूँ मैं सबसे
वक्त भी पीछे छूट गया मैं तो हूँ वहीं के वहीं
उमर बढ़ती गयी मगर कहानी तो वहीं रही
कितने हुनर पास थे कहाँ छिपे पड़े है
जहां से शुरू हुआ आज भी वहीं खड़े है
क्यूं खुद को इतना रोका समझ नहीं आता
अपना दर्द अब खुद को ही नहीं भाता
क्या अभी कुछ उम्मीद बाकी है चलो देखते है
खुद को फिर से ढूंढने का एक मौका लेते है।