मैं शायरी नहीं ,गज़ल लिख रहा हूँ
मैं शायरी नहीं ,गज़ल लिख रहा हूँ
मैं शायरी नही, अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ ,
हर पल, बेमिसाल लिख रहा हूँ ,
जितने थे सवाल , अब हल लिख़ रहा हूँ ,
बाते जो थी अनकही, शब्दों में पिरो कर
हर शाम लिख रहा हूँ
अपने ही जज्बातो का , मैं हाल लिख रहा हूँ
मैं शायरी नहीं, अब गज़ल लिख रहा हूँ।।
खुशी ही नहीं, आंसुओ का भी हिसाब लिख रहा हूँ,
यूंही फिर इक बार आंखें लाल कर रहा हूँ,
कलम से ही अपने दर्द ए दिल का हाल लिख रहा हूँ,
प्रेम को ही , मोह- मायाजाल लिख रहा हूँ ,
अधूरी सी अपनी कोई दास्तां लिख रहा हूँ,
मैं शायरी नहीं अब गज़ल लिख रहा हूँ।।
अपने ही लफ्जों से, एक बवाल लिख रहा हूँ ,
झूठे थे जो कसमें वादे,वो नासूर लिख रहा हूँ,
अपने ही क़त्ल का मैं वारदात लिख रहा हूँ,
खून से खुद का इंतकाम लिख रहा हूँ,
रह गया जो बन कर सवाल वो अधूरा प्रेम लिख रहा हूँ,
मैं शायरी नहीं अब गज़ल लिख रहा हूँ,
टूट कर बिखरा हुआ हूँ
अपने ही हाथों बस अपना अंत लिख रहा हूँ।।