मैं नहीं चाहती मोक्ष..
मैं नहीं चाहती मोक्ष..
..नहीं चाहती मोक्ष
मैं लौट आऊंगी
कि जैसे.. तुलसी में हो मंजरी
या..वो सावन की बूंद
जब धरती हो प्यासी,
कि जैसे..पत्ती-पत्ती झरता हो प्रेम
दावानल के बाद,
कि जैसे.. भारी बरसात के बाद
ताली बजाता है
इंद्रधनुष ,
या घने कोहरे में भी
खिल आती हो धूप
गर्माहट का आश्वासन देती हुई सी ,
कि जैसे..
तिरस्कृत प्रार्थनाओं के बाद भी
लौट आतीं हैं
अक्षय संभावनाएं ,
कि जैसे..उग आती है दूब
स्वयं से
उस प्रलय के बाद भी !!
और..
कि जैसे..लिखी जाती है कोई कविता
कम बोले शब्दों में भी
आत्मिक-प्रेम के साथ !!