मैं कुछ गुनगुनाता नहीं..!
मैं कुछ गुनगुनाता नहीं..!
मैं कुछ गुनगुनाता नहीं..
मैं कुछ बोलता नहीं..
तू ही कुछ बोल दे
मिला के नजरें मुझसे तू..
अपनी पहचान मेरे पास छोड़ दो..
मैं हूं अल्पभाषी
दिल का विश्वासी
जो कहेगी तू.... मैं मान लूंगा
मैं नजदीक हूं तेरे..
तुम गुनगुनाओ नगमें
तेरे दिल के पास हूं, सुनूंगा
आज कोई शब्द निकल नहीं सकती,
मेरे अल्फाजों से
बस मायूस हूं तुझसे
सिर्फ तू ही बोल मेरे यारा..
मेरे मन को मत टटोल
इतना भी बिछड़ा नहीं हूं,
करता हूं तुझसे प्यार..
बस मीठी आवाज, अपने होंठों से
एक बार मुझे सुना दे
कहता हैं दिल मेरा,
तेरी बातें सुनने को
यहां सुनसान हैं जगह, सिर्फ़ पंछी हैं
या फिर हम दोनों
इतना गुमशुदा होना भी अच्छा नहीं हैं यारा..
जमाना पलट गया हैं , अपने ही दौर पर,
कुछ तो बोलो मुझसे दिल मिलाकर..!!!

