मैं कमजोर नही
मैं कमजोर नही
एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है
रिश्तों के नाम बदलकर कहर ढाती है
जज्बात अपनो के हो तो अपनी बाहें फैलाती है
वरना आँचल की सीमा उसकी सिमट जाती है
एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है!
पहनाती तो पायल है,पर बेड़िया बन जाती है
हाथों की चूड़ी की खनक, पर उसको नही भाती है
बनती है माँ तो प्यार झोली भर लुटाती है
बनकर प्रियतमा ताउम्र अपने साजन की हो जाती है
ना जाने क्यों सास बनकर सारी इंसानियत भूल जाती है
एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है!
अपने आँगन से अपनी बिटिया को विदा करती है,तो अश्कों का सैलाब बना देती है
लाती है किसी और कि अमानत तो, अश्कों की बारिश कराती है
कहती है ये घर है तुम्हारा, मायके में मेहमान बना देती है
पर बात है हक़ की, तो दहलीज माँ की याद दिला देती है
एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है!
तकलीफ़ बेटी की दूर तलक से दिल में छेद कर जाती है,
पर जो जिंदगी भर साथ निभाती है उसकी आह भी नही भाती है
बार बार ये दिल यही कहता है,
आखिर एक सास , माँ क्यों नही बन पाती है
एक औरत ही औरत की दुश्मन बन जाती है!