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AMAN SINHA

Romance Tragedy Fantasy

4  

AMAN SINHA

Romance Tragedy Fantasy

मैं जीया हूँ दो दफा

मैं जीया हूँ दो दफा

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385


मैं जिया हूँ दो दफा और दो दफा हीं मैं मरा हूँ 

पर अधूरी ख्वाहिशो संग हर दफा हीं मैं रहा हूँ 

चाह मेरी जो भी थी वो मेरे पास थी सदा 

पर मेरे पहुँच से देखो दूर थी वो सर्वदा 


राह जो चुनी थी मैंने पूरी तरह सपाट थी 

पर मेरे लिए हमेशा बंद उसकी कपाट थी 

मैंने जो गढ़ी इमारत दीवार जो बनाई थी 

उसकी नींव में हमेशा हो रही खुदाई थी 


मैं चला था साथ जिसके मंज़िलों के प्यास में 

वो रहा था पास मेरे किसी दूसरे के आस में 

साथ मेरे होने का वो स्वांग यूँ करता रहा 

जानता था मैं भी सब पर संग उसके चलता रहा 


अब कहीं जाकर उसका मतलब समझ मैं पाया हूँ

शरीर उसका है कोई मैं तो बस उसका साया हूँ

जब तलक रहेगी धूप होगा सिवा मेरे कुछ भी नहीं

छाँव मे मगर उसके मन मे मेरे खातिर कुछ नहीं


हाँ यही एक सच है मेरा हाँ यही तो मर्ज़ है

वो नहीं हो सकता मेरा बस यही एक हर्ज है 

बस इसी एक आस मे उम्र बिताता जाता हूँ

मैं जिया हूँ दो दफा और दो दफा हीं मैं मरा हूँ।


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