मैं झुकता नहीं
मैं झुकता नहीं
मैं झुकता नहीं, मैं रुकता नहीं,
निश्चय कर जब निकला कहीं,
अंतर मन की बाधाओं से मैं,
लड़ा जो पहले खुद से ही मैं,
सोच में अपनी दृढ़ता लाया,
विश्वास से मैं, फिर लड़ने आया,
चाहे, पैरों पर लाखों छालें आए,
कदम मगर, फिर, रुक ना पाए,
खुशियां भूलीं, गम को भी देखा,
मंज़िल से पहले, रूक के ना देखा,
मैं झुकता नहीं, मैं रुकता नहीं,
निश्चय कर जब निकला कहीं,
राह में ठोकर, बहुत सी खाई,
मन में भी, बहुत विचलता आई,
ठानी थी मन में, बस एक ही बात,
रुका जो तू तो, देगा ना कोई साथ,
पूरे जीवन के संघर्ष को अपने,
नहीं टूटने दे सकता था, सपने अपने,
राह कठिन है, यह जानता, था मैं,
दूरी नाप के, ही तो, निकला था मैं,
अब कैसे मैं ठहर जाता,
बीच समंदर में डूब ना जाता,
इसलिए, कहता ये फिरता,
मैं झुकता नहीं, मैं रुकता नहीं,
निश्चय कर जब भी निकला कहीं।