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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Fantasy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Fantasy

मैं भी कितना पागल निकला

मैं भी कितना पागल निकला

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अपनी छाया में जिंदगी ढूंढने निकला 

देखना लोगों मैं भी कितना पागल निकला 


आशना था आशना हूँ आशना ही रहूँगा 

लोग कहते हैं ये भी इक दीवाना निकला


रोकता भी अगर कोई मुझे तो कैसे रोकता 

जब भी निकला मैं तो घर पर ही निकला 


डूबने को लोग निकलते हैं समंदर तलाशने 

जो न देखा मंज़र वो ही बस सागर निकला 


आशिकी को अब किसी कांधे की जरूरत क्या है 

गली गली में हर कोई लैला तो कोई मजनूँ निकला 


भीड़ की भीड़ है उफनते दरिया सी यहाँ ओ वहां 

कोई देखे किसको जो बेचारा बेसहारा निकला 


शाम ढलने लगी है चलो घर को चलते हैं 

पंछियों का टोला भी अब शजर ढूंढ़ने निकला 


अपनी छाया में जिंदगी ढूंढने निकला 

देखना लोगों मैं भी कितना पागल निकला 


आशना था आशना हूँ आशना ही रहूँगा 

लोग कहते हैं ये भी इक दीवाना निकला


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