मैं बड़ा परेशान हूं
मैं बड़ा परेशान हूं


मैं बहुत परेशान हूँ अपनो से हैरान हूं
वो बड़ा सताते हैं वो बड़ा रुलाते हैं
मैं बड़ा परेशान हूं उनसे अनजान हूं
अपनो का रखता, मैं बड़ा ध्यान हूं
अपने कत्ल करते,अपने निर्बल करते,
फिऱ भी मैं साखी,उन्हें मानता इंसान हूं
मैं भी कितना पगला हूं रेत पे बना रहा मकान हूं
मैं बड़ा परेशान हूं अपनो से हैरान हूं
रोशनी का अंधेरा हूं तम का बांधे सहरा हूं
बुझे हुए दीपो मे,मैं जलता दीप नादान हूं
वो तोड़ते है,शीशा,दर्द देते है,बीसा,
फिऱ भी जीना तो है गम को पीना तो है
क्योंकि मैं एक पत्थर,कोहिनूर का दान हूँ
मैं बड़ा परेशान हूं अपनो से हैरान हूं!