मैं और तुम
मैं और तुम
क्या कहोगे तुम
कहना था जब
खामोश थे तब
बात ही क्या अब
क्या कहूं मैं और
क्या सुनोगे तुम
जिंदगी का सफर
मीलों की दूरी और
सदियों सी तन्हाई
अपनों की महफिल
पराया सा व्यवहार
हम नहीं रहे हम
अब तो बस
तुम-तुम और मैं-मैं
क्या कहोगे तुम
कहना था जब
खामोश थे तब
बात ही क्या अब
क्या कहूं मैं और
क्या सुनोगे तुम
जिंदगी का सफर
मीलों की दूरी और
सदियों सी तन्हाई
अपनों की महफिल
पराया सा व्यवहार
हम नहीं रहे हम
अब तो बस
तुम-तुम और मैं-मैं