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Sonam Kewat

Romance

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Sonam Kewat

Romance

मैं और शाम

मैं और शाम

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इल्जाम लगाने से पहले जिंदगी के,

कुछ कर्ज उतार कर तो देखो।

यादों को नहीं मेरे साथ कुछ,

शामें गुजार कर तो देखो।

देखो वह शाम की लालिमा,

किस तरह मुस्कुराहट दे जाती है।

किस तरह मेरी बाहों में तन्हाई भी,

आकर खुद ही सिकुड़ जाती है।

एक ओर सूरज डूबता है और,

दूसरी ही ओर चाँद निकलता है।

पर शाम को उन दोनों का साथ

एकसाथ नसीब में कहां मिलता है।

वह शाम भी मुझसे बातें करतीं है

और जाने क्या क्या कहती है।

वो भी शायद तनहा है मेरी तरह,

आकर मेरे साथ यही रहती है।

इस शाम की सुंदरता में कुछ,

बहुत गहरी सी मेरी यादें हैं।

जो हर किसी से ना कह सकें

ऐसी ही कुछ ढेर सारी बातें हैं।

उम्मीद देतीं हैं कल फिर आऊंगी,

इसी तरह मेरा इंतजार करना।

तन्हा हो कर भी साथ दे जाऊंगी,

पर तुम किसी से भी ना कहना।


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