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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई

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कुछ हसरतों को साकार करने में जीवन का बहुलांश बीत जाता हैं।कई बार द्वंद्व आते है और हम सह लेते हैं हम जीवन की कई तकलीफें हँसते हँसते झेलते है और ताक पर रख देते हैं वो तमाम नसीहतें,सामाजिक नियमों की बातें और उनकी परवाह तक नहीं करते।मन में एक ही बात रहती है हम है तो समाज हैं।satisfy your soul not the society....और

एक चित्त रहकर,प्रयासरत,दृढ़संकल्पित होकर बस एक उद्देश्य को पूरा करने में हम जुट जाते हैं।कई अँधेरी रातों से, जोखिम की घाटीयों से गुज़र कर हम सफलता के शिखर की चढा़ई करते हैं।इस प्रयत्न में कई बार थकते हैं,टूटते हैं,परिश्रम कर कर ध्वस्त भी होते हैं।यहीं नहीं इस संघर्ष के दौर में हम पर कई तंज भी लोग कसते हैं जैसे कि-घमण्डी हो,बडे़ जिद्दी हो,सनकी हो,अडि़यल किस्म के हो,बेपरवाह हो गए हो,कम बात करते हो,अपने आगे किसी की चलने ही नहीं देते हो,जो तय कर लेते हो वही करते हो,अपनी धुन में ही रमे हो,कितने बेरुखे हो इत्यादी।जिसकी जितनी बुद्धि और समझ होती उसी के हिसाब से उसकी बातें होती।जबकि असल में सच्चाई यह होती हैं की हम अपने लक्ष्य के प्रति जब तटस्थ होने लगते हैं तब हम पर इन बातों का फर्क पड़ना ही बंद हो जाता हैं।लोगो की नज़रो में हम कुछ भी हो मगर स्वयं में तटस्थ होने का भाव हमें लक्ष्य के प्रति और प्रतिबद्ध करता जाता हैं तथा हमें कर्म के प्रति, पुरुषार्थ के प्रति ईमानदार बनाता है।

आपके जीवन में कुछ ही लोग होंगे जो आपको अंत तक समझ पाते हैं इसलिऐ कभी निराशा ना लाऐ इन बातों से क्योंकी ऐसे संबोधन अक्सर आऐंगे,अनगित बार आऐंगे।अधिकांश लोग आपको जज ही करेंगे और कुछ ही होंगे जो अंत तक आपके साथ खडे़ रहेंगे।क्योंकी जब भी कोई अच्छे काम को करने जाता हैं द्वंद्व तो अथाह आते हैं और यह सब आना लाज़मी भी होता हैं।हां ये सब राह की चुनौतीयों को बढा़ऐंगे मगर असीम क्षमता,स्वयं का मानसिक प्रबंधन,इच्छाशक्ति,कौशल आदी को विकसित करने में सहायक भी होंगे,व्यक्तित्व का निर्माण इन सभी पडा़वो से गुज़र कर ही होता हैं।कर्म की भट्टी में तप कर ही सोना निखरता़ हैं।इससे दुनिया का सामना करने की बौधिक क्षमता का विकास हमारे अंदर अधिक होता जाता हैं।

"सूर्य की तरह चमकने के लिऐ पहले सूर्य की तरह जलना ही होता हैं"

अंततः इस यात्रा को पूर्ण कर जब हमें सफलता मिलती हैं तब उस दिन हमारे जीवन का सूर्योदय होता हैं।

तब बहारें आती हैं....आती हैं ? अरे, नहीं नहीं.....

परिश्रम से लाई जाती हैं


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