मैं और मेरा प्रीतम
मैं और मेरा प्रीतम
नहीं जानता मैं आशिक़ी और माशूकी,
जानता हूँ, सिर्फ़ प्रीतम प्यारे को, आँखें भर भर देखना चाहता हूँ,
मैं टिक टिकी लगा कर उसे दिल के भीतर बसाना चाहता हूँ.......!
दीन भी वो है, मेरी दुनिया और कायनात भी वो है,
बस हर पल चरणों में रह कर
ज़िंदगी गुज़ारना चाहता हूँ....!
जीना तो जीना, मैं तो मौत भी उसके कदमों में चाहता हूँ,
कुछ इस तरह ही अपनी मौत भी गुलाबी बनाना चाहता हूँ...!
हरगोविंद, कुछ और चाहत नहीं ना ही किसी और को चाहता हूँ,
चाहता हूँ सिर्फ़ तेरा दीदार और तेरा सिर्फ़ तेरा ही बन कर रहना चाहता हूँ.....!