मैं अपनी फेवरेट हूं
मैं अपनी फेवरेट हूं
मैं मोटी हूं या पतली
मैं गोरी हूं या काली
मैं लम्बी हूं या नाटी
मैं हूं बेअदब या फिर अच्छे संस्कार वाली
इस दुनिया ने हर शख़्स को
श्रेणी में रखने की आदत क्यों है डाली?
हाथों की पांच उंगलियां भी नहीं होती समान
फिर कैसे सोचा "परफेक्ट" दिखने चाहिए तुम्हें इंसान।
जो जैसा है, उसको वैसा क्यों नहीं अपनाता ये जहान
और तुम खुदा तो नहीं
जिसके अपनाने पर मैं बन जाऊंगी महान।
कुछ अंदाज़ा है,
तुम्हारा कथन किसी को कितना घात लगा सकता है?
अच्छे-खासे बंदे को सीधे डिप्रेशन में पहुंचा सकता है।
भला किसी का कर ना सको तो,
बुरा किसी का क्यों करना?
कल को इसी बॉडी शेमिंग का असर
तुम्हारी अपनी पीढ़ी पर नहीं पड़ना?
तुम्हारी सुंदरता की परिभाषा मुझको नहीं भाती
मैं जैसी हूं, खूबसूरत हूं
इतनी सी बात तुमको समझ नहीं आती?
सांवली हो तो दही-बेसन लगा लो
मोटी हो तो वजन घटा लो
पतली हो तो घी जमकर खा लो
छोटी हो तो थोड़ा कद ही बढ़ा लो।
बस करो यार, ज़रा तुम अपनी जुबान पर लगाम डालो।
मैं खुद से बेहद करती हूं प्यार
मुझ पर बोलने का नहीं किसी को अधिकार
जो करते हो तुम शब्दों से वार
जाओ, फिर तुम पर धिक्कार।
मेरे मन को तुमने नहीं जाना,
मेरे व्यक्तित्व से सब कैसे पहचाना?
यह कला मुझको भी सिखलाना,
मैंने तो अच्छे दिलवालों को सबसे सुंदर है माना।
कहीं ना कहीं दुनिया नहीं बदलने वाली
बाहर से रंगीन, पर दिल से तो बिल्कुल काली।
हमने भी आज चिल्लाकर इनसे ये बात कह डाली
"मैं तो अपनी फेवरेट हूं"
अब दिक्कत हैं तो जूझते रहे स्वयं समाज के सवाली।
