मैं ऐसी ही हूँ
मैं ऐसी ही हूँ
छोटी छोटी बातों पे रो देती हूँ
जरा जरा सी बातों से आहत होती हूँ
तुम्हें खोने के डर से घबरा जाती हूँ
गर गुस्सा करो तो खुद को सहमा पाती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
कभी अनजाने डर से घिरती हूँ
ना जाने क्यूँ अंदर ही अंदर टूटती हूँ
बन्द दरवाजों के पीछे सिसकती हूँ
लम्हा-लम्हा, थोड़ा-थोड़ा पिघलती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
पता है उम्र ढलती जा रही है
पर बचपन कि अठखेलियों में खो जाती हूँ
यूँ तो बड़ों सा बर्ताव करने की कोशिश करती हूँ
पर बच्चों के साथ बच्ची बन जाती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
कभी-कभार अपनों से ही धोखा खाती हूँ
अपनों के ही बुने जाल में फंस जाती हूँ
ना-ना इसमें उनकी कोई खता नहीं
उनपे आँख मूंद के मैं विश्वास जो करती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
कभी आजाद परिंदों सी उड़ान भरती हूँ
अपने ही खयालों में मस्त रहती हूँ
कुछ कर दिखाने के ख्वाब देखती हूँ
आसमान छू लेने के सपने बुनती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
कभी अपनी तकदीर पर इतराती हूँ
कभी उसी तकदीर को कोसती हूँ
कभी आत्मविश्वास से भर जाती हूँ
कभी खुद को हारा हुआ पाती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
बिना कोई मतलब के सबको प्यार बाँटती हूँ
अपनों पर ममता की बौछार करती हूँ
बदले में कुछ नहीं माँगती मैं
बस सबसे थोड़ा सा प्यार चाहती हूँ
हाँ मैं ऐसी ही हूँ
