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Shruti Bawankar

Abstract

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Shruti Bawankar

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काल

काल

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385



तुम्हारा भुत भविष्य वर्तमान हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ।

तुम्हारे हर सवाल का

जवाब हूँ

तुम्हारा बचपन और जवानी

मेरी छाया में ही गुज़रा

तुम्हारे अतीत के पल-पल का

मैं गवाह हूँ

पहचाना मुझे?

मै काल हूँ।

तुम्हारी हँसी,तुम्हारी हर सिसकियाँ

मेरे कानो ने सुनी है

तुम्हारे हर अच्छे-बुरे कर्मो का

मैं हिसाब हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ।

तुम्हारी जिंदगी का कोई भी पन्ना

मुझसे छुपा नही है

तुम्हारी हर छोटी-छोटी यादों कि

मै किताब हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ

मेरे अन्धेरे गर्भ से ही तेरा उगम है

मेरी ही ज्वाला में ही तेरा अन्त है

तुम्हारे नश्वर शरीर का

मै कफ़न हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ

तुम्हारा आज मेरी मुठ्ठी में है बंद

तुम्हारा कल मेरे दिल में है दफ़न

तुम्हारे भविष्य का

मैं आवाज हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ

घमंड ना कर वो चकनाचूर हो जाएगा

गर गलतिसे भी तू मुझे धुतकारेगा

तुम्हारी हर गलती के बदले

तुम्हारा विनाश हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ

आदर जो मेरा करेगा मनचाहा फल पाएगा

तेरी कोशिशों से तू दिल मेरा जीत जाएगा

तुम्हारी हर कोशिश के लीए

मैं गले का हार हूँ

पहचाना मुझे?

मैं काल हूँ

तेरे हर पल पर हुकुमत मेरी चलती है

तेरी हर चाल पर नज़र मेरी रहती है

तुम्हारी हर चाल का

मैं परिणाम हूँ

पहचाना मुझे?

मै काल हूँ


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